माँ, दिन में तोड़ पत्थर धूप में बहाती पसीना राशन की दूकान से कुछ चावल पाकर खूब खुश हो जाती अम्मा
सुबह कमाकर शाम को पकाती कुछ चावल अम्मा आज हैरान है, बेटा अपनी माँ को जानता है भिखारी तो नहीं है, माँ उससे कुछ ज्यादा भी नहीं है माँ के द्वार कुछ भिखारी खड़े हैं
सुबह से उजले कपड़ों में कुछ लोग बार बार याचक बन माँ से कुछ मांगते ,और वह गर्व से अचानक फूल गया है माँ, धनी है कुछ दे सकती है कुछ देर के लिए, माँ भी चेहरे पर अमीरों जैसी मुस्कान ले आती है,,,,,,,,,,,, yogendra singh shekhawat , tihawali
माँ, दिन में तोड़ पत्थर
जवाब देंहटाएंधूप में बहाती पसीना
राशन की दूकान से
कुछ चावल पाकर
खूब खुश हो जाती अम्मा
सुबह कमाकर शाम को
पकाती कुछ चावल अम्मा
आज हैरान है, बेटा
अपनी माँ को जानता है
भिखारी तो नहीं है, माँ
उससे कुछ ज्यादा भी नहीं है
माँ के द्वार कुछ भिखारी खड़े हैं
सुबह से उजले कपड़ों में
कुछ लोग बार बार याचक बन
माँ से कुछ मांगते ,और वह
गर्व से अचानक फूल गया है
माँ, धनी है कुछ दे सकती है
कुछ देर के लिए, माँ भी चेहरे पर
अमीरों जैसी मुस्कान ले आती है,,,,,,,,,,,,
yogendra singh shekhawat , tihawali